Explained: विराट कोहली; अभी नहीं तो कभी नहीं… ऑस्ट्रेलिया दौरा तय कर देगा पूरा भविष्य, सचिन-द्रविड़ भी इस दौर से गुजरे

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सर विवियन रिचर्ड्स- आखिरी 21 पारियां, कोई शतक नहीं.
सचिन तेंदुलकर- आखिरी 19 पारियां, कोई शतक नहीं.
राहुल द्रविड़- आखिरी 13 पारियां, एक शतक.
रिकी पोटिंग- आखिरी 11 पारियां, कोई शतक नहीं.

अलग अलग शैली वाले इन चार दिग्गजों को आप टेस्ट क्रिकेट के सर्वकालीन महान बल्लेबाज़ों में से गिन सकते हैं. इन चारों दिग्गजों में अगर कोई एक बात समान दिखती है तो यह कि 35 साल या उसके पास की उम्र के बाद अपनी महानता वाले रुतबे को बरकरार रखने की चुनौती. द्रविड़ और पोटिंग ने तो बहुत ज़्यादा समय भी नहीं गंवाया ये भांपने में कि वक्त ढलान का आ चुका है और बेहतर है कि सही समय पर खेल को अलविदा कह दिया जाय. रिचर्ड्स और तेंदुलकर का ओहदा और उनकी कामयाबी हर किसी की नज़र में इन दोनों के मुकाबले बीस दिखती है तो शायद उन्होंने थोड़ा वक्त ज़्यादा लिया ये समझने में कि वाकई में अब वो अपने सर्वश्रैष्ठ दौर को पीछे छोड़ चुके हैं.

न्यूज़ीलैंड सीरीज़ में टीम इंडिया की करारी हार के बाद अचानक से ही विराट कोहली जैसे दिग्गज हर किसी की आलोचना के घेरे में आते दिख रहे हैं. जिस खिलाड़ी को तेंदुलकर के 100 अंतरराष्ट्रीय शतक को तोड़ने का सहज उत्तराधिकारी माना जा रहा था अब उसके टेस्ट क्रिकेट में 10 हज़ार रनों के क्लब में शामिल होने पर आलोचक संदेह कर रहे हैं.

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ऐसे में देखने वाली बात ये है कि आंकड़े क्या कहते हैं. 2011 से 2019 तक 84 टेस्ट के दौरान कोहली ने 27 शतक बनाए तो 2020 से लेकर अब तक 33 मैचों में सिर्फ 2 शतक. यानि कोहली के करियर को बहुत सारे पूर्व खिलाड़ी दो फेज़ में देखने की कोशिश कर रहें हैं. इतना ही नहीं आखिरी 60 पारियों में जिन दो शतकों का जिक्र ऊपर हो रहा है उसमें भी एक अलग दृष्टिकोण है. 2023 मार्च में अहमदाबाद से लेकर जुलाई 2023 में पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट के दौरान 5 पारियों में कोहली के दो शतक आए और ऐसा आभास हुआ कि पुराने विराट वापस लौट आए हैं. लेकिन, आंकड़ों को अगर थोड़ी क्रूरतापूर्व देखा जाए और इन दो शतकों को हटा दिया जाए तो 55 पारियों के दौर में कोई भी शतक नहीं! और यही बात ऑस्ट्रेलिया दौरे से ठीक पहले हर किसी को चिंता में डाल रही है.

पांच नवंबर विराट कोहली का जन्मदिन है. अब वे 36 साल के हैं. ऐसे में अहम सवाल यही कि क्या वो क्रिकेट के दिग्गज़ों के आखिरी दौर में ख़ासतौर पर 35 साल के बाद होने वाले संघर्ष की अनचाही परंपरा को झुठलाने का दमखम रखते हैं? ज़ाहिर सी बात है इस सवाल का ठोस जवाब किसी के पास नहीं हो सकता है. लेकिन, एक बात जो कोहली को रिचर्ड्स-तेंदुलकर- द्रविड़-पोटिंग से जुदा करती है वो है उनका असाधारण तरीके से अब भी फिट रहना. कोहली को फिटनेस और उनकी ऊर्जा को आज के दौर में भी कोई 19 साल का खिलाड़ी चुनौती नहीं दे सकता है लेकिन क्या ये फिटनेस बल्लेबाज़ी कौशल में स्वाभाविक और नैसर्गिक तौर पर होने वाली गिरावट को रोकने में कारगर साबित हो सकती है? इस लेखक ने करीब दर्जन भर पूर्व बल्लेबाज़ों से बातचीत की और लगभग सभी इस बात पर सहमत दिखे कि ये राह आसान नहीं.

तो ऐसे में कोहली अब आगे क्या करेंगे? टेस्ट करियर की दिशा कौन तय करेगा? इन सभी बातों का जवाब आने वाले ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टिका है. अगर 5 मैचों की सीरीज़ में कोहली 3 शतक बनाने में कामयाब होते हैं तो निश्चित तौर पर अगले साल के इंग्लैंड दौरे तक वो लाल गेंद में नई मंज़िले हासिल करने की कोशिश करते दिखेंगे. अगर टीम इंडिया बुरा खेल नहीं दिखाती है और लगातार तीसरी बार सीरीज़ जीतने में कामयाब होती है तो कोहली के दो शतक भी फैंस और चयनकर्ताओं की चिंता दूर कर देंगे. लेकिन, मुश्किल तो तब होगी अगर टीम को नतीजे मन-मुताबिक नहीं मिलते हैं और कोहली सिर्फ 1 शतक ही बना पाने में कामयाब हो पाते हों. ये हालात ना सिर्फ कोहली बल्कि उनके कट्टर समर्थकों को भी असहज कर देगा.

विराट कोहली ने अपनी पूरी क्रिकेट नकारात्मक सोच के साथ कभी नहीं खेली. अगर ऐसा होता तो वो 2014 के इंग्लैंड दौरे के संघर्ष के बाद एक असाधारण तरीके से बल्लेबाज़ी करते हुए अफनी बादशाहत साबित नहीं कर पाते. आज कोहली एक बार फिर से एक दशक बाद उसी दोराहे पर खड़े हैं. आलोचकों का एक वर्ग ऐसा है जो ये मान चुका है कि अतीत की दिग्गजों की तरह कोहली का ये संघर्ष भी कोई अनोखी बात नहीं है. ऐसा सबके साथ होता है. लेकिन, खुद कोहली औऱ उनके चाहने वालों को पता है कि दिल्ली के इस बल्लेबाज़ ने अपनी दिलेरी उन मौकों पर दिखाई जब जब उनकी काबिलियत को संदेहपूर्वक देखा गया. कोहली के लिए ऑस्ट्रेलिया दौरा करो या मरो नहीं बल्कि अभी नहीं तो कभी नहीं जैसा बन चुका है.

Tags: India vs Australia, On This Day, Rahul Dravid, Sachin tendulkar, Virat Kohli

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