नई दिल्ली. पाकिस्तान में होने वाली आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में भारत क्या अपनी टीम भेजेगा? क्रिकेट वर्ल्ड में यह सवाल सालभर से घूम रहा है. भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को समझने वाला कोई भी व्यक्ति हफ्ते भर पहले तक इस सवाल के जवाब में कहता- शायद नहीं. लेकिन पिछले दिनों ऐसा बहुत कुछ हुआ, जिससे जवाब में हां की गुंजाइश बनने लगी है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा, करतारपुर साहिब समझौते को 5 साल बढ़ाना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘डायलॉग और डिप्लोमेसी’ पर जोर देना कहीं इस बात का संकेत तो नहीं कि भारत अब ‘क्रिकेट कूटनीति’ आजमाना जा रहा है.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर हाल ही में पाकिस्तान में थे. मौका था एससीओ (शंघाई कोऑपरेशन कॉर्पोरेशन) की बैठक. यह 10 साल में पहला मौका था जब भारत का कोई विदेश मंत्री पाकिस्तान गया. एस. जयशंकर ने एससीओ बैठक में तो हिस्सा लिया ही. उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ से भी मुलाकात की. आमतौर पर एकदूसरे के खिलाफ आक्रामक भाषा इस्तेमाल करने वाले भारत और पाकिस्तान ने इस बार इस्तकबाल किया और सकारात्मक बातें कहीं. ना एस. जयशंकर ने सीधे कोई निशाना साधा और ना ही शाहबाज शरीफ ने अपने भाषण में कश्मीर का जिक्र किया.
एस. जयशंकर जब इस्लामाबाद से दिल्ली लौटे तो ट्वीट कर शाहबाज शरीफ को खातिरदारी के लिए शुक्रिया कहा. जयशंकर के भारत लौटने के बाद बताया गया कि ‘यह सिर्फ बातचीत नहीं थी, बल्कि उस डाइनिंग टेबल की बातचीत में और भी बहुत कुछ हुआ है.’ क्या क्रिकेट पर भी कोई बात हुई है. भारत या पाकिस्तान सरकार ने इससे इनकार नहीं किया है. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस बारे में इशारों में संकेत देते हैं कि दोनों देशों के बीच क्रिकेट फिर से शुरू हो तो हैरान नहीं होना चाहिए.
नवाज शरीफ ने जयशंकर के दौरे को लेकर कहा, ‘बात ऐसे ही बढ़ती है. यह खत्म नहीं होनी चाहिए. अच्छा है कि जयशंकर यहां आए. अब हमें वहीं से शुरुआत करनी चाहिए, जहां हमने इसे छोड़ा था.’ नवाज ने भारत-पाक क्रिकेट का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि एक-दूसरे के देशों में टीमें न भेजने से किसी को कोई फायदा नहीं है. अगर दोनों टीमें पड़ोसी देश में किसी बड़े टूर्नामेंट के फाइनल में खेलती हैं तो वे भारत की यात्रा करना चाहेंगे.
क्रिकेट और राजनीति पर नजर रखने वाले जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट कूटनीति पहले भी होती रही है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसी के तहत भारत की क्रिकेट टीम पाकिस्तान भेजी थी. उन्होंने कप्तान सौरभ गांगुली से सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, भारत-पाक रिश्तों का ख्याल रखने को भी कहा था.
इन 10 दिनों में सिर्फ एस. जयशंकर ने ही पाकिस्तान के खिलाफ नरमी नहीं बरती है. इसी दौरान चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से अपने सैनिक पीछे ले जाने पर सहमत हुआ और दोनों देशों के बीच नई उम्मीद जगी. इन्हीं दिनों करतारपुर समझौता 5 साल के लिए बढ़ा दिया गया. पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब सिखों का पवित्र स्थल है. इस कॉरिडोर के रास्ते भारत से हजारों सिख श्रद्धालु हर साल पाकिस्तान जाते हैं.
एससीओ की बैठक, एलएसी से चीनी सैनिकों का पीछे हटना, करतारपुर साहिब समझौते के बाद सबसे बड़ा बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आया. पीएम मोदी ने ब्रिक्स समिट में रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास की जंग का जिक्र किया और कहा, ‘हम युद्ध नहीं, डायलॉग और डिप्लोमेसी का समर्थन करते हैं.’
भारत पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान पर बेहद आक्रामक रहा है. उसने साफ कहा कि जब तक सीमा पार आतंकवाद की फैक्ट्री है, तब तक कोई बातचीत नहीं होगी. भारत के इस रुख से पाकिस्तान काफी हद तक दुनिया में अलग-थलग पड़ा है. पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा है. इस कारण भी पाकिस्तान सरकार भारत से बातचीत का आग्रह करती रही है. क्रिकेट भी इसका जरिया बन सकता है.
अगले साल पाकिस्तान आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी करने जा रहा है. वह भारत को ‘दिल से’ बुला रहा है. साल 2011 में जब भारत ने आईसीसी वर्ल्ड कप की मेजबानी की थी, तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मैच देखने के लिए चंडीगढ़ आए थे. जाहिर है भारत-पाकिस्तान की सरकारें क्रिकेट के जरिए भी बातचीत का रास्ता ढूंढ़ लेती हैं. भारत-पाक क्रिकेट और संवाद से समस्या का समाधान ढूंढ़ने वाले इन संकेतों में बहुत कुछ देख रहे हैं. बाकी वक्त बताएगा कि होता क्या है क्योंकि यह भी सच है कि मोदी सरकार के अगले कदम का अंदाजा किसी को नहीं होता है. फिर भी एक उम्मीद तो जगी है कि रोहित शर्मा और विराट कोहली का बल्ला अगले साल पाकिस्तान में आग उगलेगा.
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FIRST PUBLISHED : October 25, 2024, 06:57 IST